कभी अपना सा, कभी खूब पराया, ये वक्त भी ना..
तपता चाँद, कभी सूरज की छाया, ये वक्त भी ना..।
तुफां से लड़कर नैया, जो मंज़िल तक आ पहुंची..
किनारे पर फिर, किसने डुबाया, ये वक्त भी ना..।
प्यार का इक दीप जला था, दिल के आशियाने में..
बगैर हवा के फिर किसने बुझाया, ये वक्त भी ना..।
दुनिया ने होने का हमारे, जाने कितना दाम लगाया..
हमने तो एहसानों का कर्ज़ चुकाया, ये वक्त भी ना..।
हम फ़र्ज़कारी का बोझ लिए, गुपचुप से चलते रहे..
किसने ये आसमां सर पर उठाया, ये वक्त भी ना..।
पवन कुमार "क्षितिज"