मैं मोबाइल देखता रह गया
सूरज की किरणें , करती रही
नृत्य, पुष्प पटलों पर,
बहती रही बयार, पतों को छू छू
करते रहे खग मघुर गान,
चन्द्र किरणें झरनों की धारों पर
करती रही रास,
समय मधुरता का बीत गया ,
मैं मोबाइल देखता रह गया
बादल झुके धरा के होंठो तक
पिघले, पानी पानी हुए समा गये
धरा के रोम रोम तक ,
शर्म से पुलकित हुआ अंग अंग
खिले पुष्प चारों ओर,
बदन धरा का हरा भरा हो गया
मैं मोबाइल देखता रह गया