तुझसे प्यार करने की मिली है मुझे ये सज़ा,
कि ये जहां हो गया है मुझसे ख़फ़ा।
और तेरा तो पता नहीं,
पर मैंने तो हर पल की है तुझसे बस वफ़ा।
तुझे ही मांगा है मैने खुदा से हर दफा,
पर शायद तुझे है मुझसे कोई गिला।
यूं ग़ैरों की महफ़िल में तो शरीक होते रहते हो,
पर मेरी महफ़िल का नहीं तुम्हें पता।
ग़ैरों के साथ हंसी-ठिठोली करते हो,
और साथ हमारे बर्ताव करते हो रूखा।
क्या वो ग़ैर इतने अपने बन गए तुम्हारे
कि अब हमसे नहीं रहा तुम्हारा
कोई रिश्ता।
✍️ रीना कुमारी प्रजापत ✍️