मैं भी तुम्हारा दीवाना,
जैसे समा का परवाना।
दोनों की नियति है एक,
इश्क़ में ही जल जाना।
गरूर किस बात का जनाब,
किसी का नहीं है जमाना।
हुस्न हो या हो सूरज,
एक दिन है ढल जाना।
दिल का दर्द कबूल मुझे,
मैं तो हूँ एक मस्ताना।
पढ़ी तो होगी दास्तान -ए- इश्क़,
फिर भी चाहत को नहीं पहचाना।
🖊️सुभाष कुमार यादव