ग़ज़ल
तुमने कभी किसी के वास्ते ग़म अपना छिपाया है
अगर छिपाया है तो दर्द से वास्ता तेरा पुराना है
तुमने कभी किसी के वास्ते ग़म अपना छिपाया है
तूफ़ा भरी कश्तीमें सहारा मन का शहर बनाया है
न रूक ने वाली करूणा की गलियों का नज़ारा है
तुमने कभी किसी के वास्ते ग़म अपना छिपाया है
हजारों तरंगों में रंगों की हंसी को जताया है
लब्ज़ ख़ामोश नहीं निगाहोंमें अमृत बसाया है
तुमने कभी किसी के वास्ते ग़म अपना छिपाया है
लंबे वक्त को गुजारना घड़ी ने ही सिखाया है
यादों के भवनमें तन्हा कांटों का कष्ट सहा है
तुमने कभी किसी के वास्ते ग़म अपना छिपाया है
पलमें अंधेरा पलमें वीराना सत्य समझ आया है
कुछ भी नहीं अपना फिर क्यों दर्द का साया है
तुमने कभी किसी के वास्ते ग़म अपना छिपाया है

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




