अक्सर सोचते सोचते थक जाती हूं
थक कर फिर सपनों में खो जाती हूं
उड़ते उड़ते ऊंचे बादलों से टकराती हूं
टकराकर अंबर का पता पूछ लेती हूं
वो कहें युगों से भागा भागा फिरू हूं
पर ये अंबर का घर ढूंढने में नाकाम हूं
सच सुनकर अवाक बने विचरती हूं
घूमते घूमते सवालों में फंस जाती हूं
केवल आकर्षण और कुछ नहीं जानू हूं
कभी कभार काले अंधेरों से गभराती हूं
ये सूरज,चंद्र तारें प्रीत उसे बेहद करु हूं
वो भी खेले आँख मिचौली जो मानू हूं
सपना भी सपना वो भी अधूरा समझूं हूं
बिन मतलब कौन अपना सत्य मानू हूं
ये रंगो की रंगत फूलों की खुश्बू भरू हूं
उपवन सा महेकू बस ये अच्छाई पालू हूं
जीने की वज़ह है..फिर भी सोचमें हूं
आख़िर ये मैं ही हूं....फ़िर मैं कहां हूं

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




