सुना है, मैं पागल-सा सड़कों पर
घूमता हूँ,
अनगिनत खड्डों में खोई हुई अपनी
वोट की कीमत खोजता हूँ।
पिछले साल ही तो तारकोल बिछा था,
निरीक्षण हुआ था,
मगर मैं फिर भी बहते तारकोल में
कुछ अफसरों की, कुछ ठेकेदारों की
देशभक्ति खोजता हूँ।
उद्घाटन की पट्टिकाओं की चमक,
उस पर लिखे नामों की धमक,
में ही कहीं मेरे वोट की कीमत थी,
जो खो गई।
उसी को खोजता हूँ।
बड़ी-बड़ी गाड़ियों के बीच मैं
दो पहियों पर चलता हूँ,
कभी-कभी पैरों पर भी चलता हूँ।
सड़क कितनी समतल है,
मैं जानता हूँ।
शायद मैं माटी का पुतला हूँ,
तभी माटी से सना हूँ।
मैं सिर्फ वोट डालने के लिए
बना हूँ,
उसकी कीमत खोजता हूँ।