अधूरेपन में जीते हैं
अपने ही ख्यालों में यूँ मरते - जीते हैं।
क्या करें आपके बिन अधूरेपन में जीते हैं।।
दर्द-ए-जुदाई का जहर हर रोज पीते हैं।जिंदगी के हर मोड़ पर अधूरेपन में जीते हैं।।
कड़वाहट सी जिंदगी को हर रोज पीते है।इस मुश्किल सी घड़ी पर अधूरेपन में जीते हैं।।
- सुप्रिया साहू