शीर्षक : सिलसिला प्यार का ...
सिलसिला प्यार का कहां रुकता है,
पांव बहके एक बार, कहां संभलता है l
दूर से आप देखा किए चुरा कर नजरें,
दूर से कोई क्या धड़कनें गिन सकता है l
दिल के आंगन में एक सजी तस्वीर तेरी,
एक पपीहे की पी कहां कौन सुनता है l
तेरी खुशबु को हवाओं ने भरा दामन यूँ,
ऐसी खुशबु को बाहों में कौन भरता है l
हमने सीने में छुपा रखी हैं ज़ज्बात कई,
हलचलें इसकी चेहरे पर कहां दिखता है l
वो एक रात का जादू या कोई सपना था,
पूनमी रात में ये चांद भी कहीं ढलता है l
तमाम उम्र" विजय" उसकी जुस्तजू में कटी,
वीरान पड़े घर में रखवाला कोई रहता है l
विजय प्रकाश श्रीवास्तव (c), नई दिल्ली