क़र्ज़ में भी शान है
कर्ज़ा ले लेकर घर बनाए
एक नहीं दो चार बनाए
गाड़ी,बंग्ला,नौकर चाकर
सबने अपने ठाठ सजाए
मूझों पर ताव देते हैं ऐसे
दुनिया के करतार हों जैसे
पूछे अगर इनसे कोई
अपना क्या है तुम्हारा प्यारे
तो अहम् से सब को अपना कर्ज़ा बतलाते
इसमें भी अपनी शान दिखाते
अपनी जिम्मेदारियाँ छोड़ बच्चे बूढ़े आया को सौंपें
अपनी शान चुकाने में अब अपने लिए ही समय नहीं निकाल ये पाते
न रिश्ते बचे ,न ही जीवन का कोई चाव बचा
कैसी यह ज़िन्दगी की अनोखी दौड़ चली
उधार के तन में उधार की सांसें लेकर उधार का ही जीवन जीते हैं
न धर्म पक्का,न कर्म सच्चा,बेईमानी की दुनिया में ईमानदारी की उम्मीद करते हैं ..
वन्दना सूद