मन को अमृत कलश बनाओ।
सदा बुद्धि को शुद्ध बनाओ।।
हो विवेक अति पावन धारा।
दिखे जगत यह अपना प्यारा।।
मन में हो संतोष अपरिमित।
त्याग भावना से अभिसिंचित।।
नित पवित्रता की खेती हो।
उपकृति खोज खबर लेती हो।।
शुभ में मन को सहज लगा दे।
सुन्दर चिंतन दिव्य जगा दे।।
क्षमा दान की वृत्ति जगे जब।
छोड़ ईश पर शांत रहो अब।।
देख द्वेष को चिंता मत कर।
बुरे वक्त को भी अच्छा कर।।
अपने घर को सतत सजाओ।
अपने में ही रच- बस जाओ।।
----डॉ0 रामबली मिश्र