क्या शिक्षा विभाग को
यह नहीं दिखाई देता
भारत की इस पुण्य भूमि से
दर्शनशास्त्र क्यों सिमटता जा रहा है?
क्या भारत के युवाओं को
महान विचारकों के चिन्तन से
दूर ही रखना अब लक्ष्य है?
और यदि ऐसा नहीं है,
तो फिर दर्शनशास्त्र क्यों उपेक्षित होता जा रहा है?
क्यों दुख देते हो?
उन दिव्य आत्माओं को
जो ज्ञान की अमर पहचान हैं
आख़िर क्यों?
आज दर्शन की यह दयनीय दशा है
यह प्रश्न मैं नहीं
बल्कि वे महान दार्शनिक आत्माएँ
हर पल पूछ रही हैं आपसे—
निःशब्द, परन्तु पुकारती हुईं...
-प्रतीक झा 'ओप्पी' (उत्तर प्रदेश)