रूक सा गया हूँ तुम्हें देखते ही,
ठहर सा गया हूँ तुम्हें सोचते ही !!
जम सा गया है कुछ मेरे अन्दर,
थम सा गया हूँ तुम्हें देखते ही !!
सोचता हूँ अक्सर मेरी जाने जाना,
नज़र ना पड़े कभी तुम पर किसी की !!
यौवन है क़ातिल जानम तुम्हारी,
कि बुत बन गया हूँ तुम्हें देखते ही !!
कैसे छुपाऊँ दुनिया से तुमको,
तुम्ही करो कुछ अब जाने अदा मेरी !!
समझाऊँ कैसे तुमही बता दो,
सनक सा गया हूँ तुम्हें चूमते ही !!
----वेदव्यास मिश्र
सर्वाधिकार अधीन है