एक वक्त की दीवानगी धूल चाटने लगी।
ढलती जवानी मंद-मंद मुस्कुराने लगी।।
कदम आगे बढ़ाए निशान पीछे छूट गए।
तबीयत जैसे ही मचली कुलबुलाने लगी।।
हस्ती बनाने को 'उपदेश' दहली पार की।
शिक्षित नारी की हरेक बेड़ी टूटने लगी।।
- उपदेश कुमार शाक्यवार 'उपदेश'
गाजियाबाद