दिल की बाज़ी हार के मैं ने जग जीता!
तेरे बग़ैर टुकड़े-टुकड़े दिन बीता!!
तन्हाई की धज्जी-धज्जी रात मिली!
तुझ को भुलाने की ख़ातिर मैं कितना पीता!
तू ही बता ऐ शब-ए-ग़म! मैं क्या करता?
अश्कों को पीता या फिर ज़ख़्मों को सीता!!
मैं ने भी मौत का दामन थाम लिया!
तेरे बिन मैं जीता भी तो क्या जीता!!
मानवता की सीख मिलेगी दोनों में!
देख लो तुम क़ुरआन या पढ़ लो गीता!!
कलयुग में जो ढूॅंढने निकला मैं 'परवेज़'!
नर में पाया राम न नारी में सीता!!
---- आलम-ए-ग़ज़ल परवेज़ अहमद