इश्क़ न जी न डर सा लगता है,
दिल एक वीरान घर सा लगता है।
काटी है जो उम्र मैंने तन्हाई में,
उसकी याद अब ज़हर सा लगता है।
मेरे अंदर का एक छोटा सा गाँव,
किसी बरबाद शहर सा लगता है।
मैं जो बच गया हूँ मेरे ही अंदर,
किसी टूटे हुए खण्डहर सा लगता है।
🖊️सुभाष कुमार यादव