प्यार भी वही था
और
यार भी वहीँ था,
एकाएक बिजली चमकी,
बादल गरजे गड़गड़ाये,
प्यार कहीं नज़र नहीं आया,
यार वहीँ साथ खड़ा था,
एक अदृस्य छाता बनकर,
बारिश से बचाने के लिए,
शायद प्यार कागज़ या
माटी का बना होगा,
गल जाने की वजह से,
घर भाग गया होगा,
पर माटी का तो मेरा यार भी था,
बस प्यार कच्ची माटी का,
और मेरा यार,
मटके (घड़े) की तरह,
पका हुआ परिपक्व,
संवेदनाओं से भरा हुआ,
बिलकुल मासूम मेरे साथ
बारिश के रुकने तक खड़ा रहा।
-डॉ कृतिका सिंह