ज़िंदगी से सवालों ने सवाल किया,
आ कर देख तेरा क्या हाल किया।
सीधी, सरल, सहज, प्रसन्न थी न,
देख! कैसे उलझा हुआ जाल किया।
खुशियों के पत्ते नीचे गिरा-गिरा के,
हरे-भरे पेड़ को कैसे कंकाल किया।
उलझा कर कुछ यूँ तुझे जंजाल में,
तेरा जीना मुश्किल, बदहाल किया।
मुस्कराते हुए सवालों से बोली वो,
अब अच्छी हूँ, क्या कमाल किया।
🖊️सुभाष कुमार यादव