येतो सच हे की इन्सान रिश्तो के बगैर जी नहीं सकता
फिर भी बनते बिगड़ते रिस्तों मे ज्यादात्तर सोचने का
तरीका कामीयाब होता हे.
देखा गया हे की स्वार्थभाव अभी अपने ऊंचे मक़ाम
पर हे क्रोधभाव लगातार थोड़ी दुरी पर हि है हास्यभाव
बेचारा दुखी-दुखी रहता हे और शांतभाव अभी भी
सबको देख रहा हे
के बी सोपारीवाला