इंसानियत
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इंसानियत की असली पहचान सिर्फ़ शब्दों से नहीं, बल्कि कर्मों से होती है। जब हम अपने जीवन की आवश्यकताओं में से कुछ त्याग कर किसी ज़रूरतमंद के आँसुओं को पोंछते हैं, तो न केवल उसका जीवन संवरता है बल्कि हमारी आत्मा को भी सुकून मिलता है।
आज की भागदौड़ भरी दुनिया में हर कोई अपनी इच्छाओं और आवश्यकताओं को बढ़ाने की होड़ में लगा है। लेकिन अच्छा इंसान वही है जो इस होड़ से ऊपर उठकर यह सोचता है कि उसके पास जितना है, उसमें से कुछ दूसरों के लिए भी निकाला जा सकता है। किसी गरीब की मदद के लिए अपने शौक़ या विलासिता को थोड़ा कम कर देना त्याग नहीं बल्कि महानता है।
जब आप किसी ज़रूरतमंद के जीवन में आशा की किरण जगाते हैं, तो दरअसल आप उसकी आत्मा को ही नहीं, अपने भीतर के इंसान को भी जीवन देते हैं। यही वह क्षण है जब इंसान होने का गर्व वास्तविक अर्थों में महसूस होता है।
इसलिए यदि आपमें यह शक्ति है कि आप अपने हिस्से की कुछ खुशियाँ, कुछ ज़रूरतें कम करके किसी और का बोझ हल्का कर दें, तो निश्चय ही आप एक सच्चे और अच्छे इंसान की श्रेणी में आते हैं। यही इंसानियत की सबसे बड़ी कसौटी है।
डाॅ फ़ौज़िया नसीम शाद