मैं समझा की तू बहुत खूबसूरत है ।
दिलजलों की तू एक ज़रूरत है।
पर गलत था मैं फलक पर था मैं ।
टूटा जब सपना तब पहचाना मैं।
वो लड़की नहीं रंग पोताई थी।
चेहरे के ऊपर कई चेहरे लगाई थी ।
वक्त बीतता गया रंग उतरता गया।
छाया था जो गुब्बार इश्क का
वह छटता गया।
एक अदद बरसात में हीं चेहरे का रंग
उतर सा गया।
संवरने की उम्र में वह बिगड़ता गया।
ना शिकवा गिला ना शिकायत कोई
फिर भी तू हरदम दूर हीं तो रही ।
दिख गया तेरा चेहरा असलियत में
तू पलकें झुकाकर लूट के सब गई।
चल रहा है द्वंद अंतर्मन मन में..अरे..
वो अभी थी इधर किधर कोई गई..
सीतमगार सनम किधर खो गई
वो अभी थी इधर किधर को गई...
सीतमगर सनम किधर खो गई..