आपकी महफ़िल में शरीक भी होते हैं,
और आपको नज़र भी नहीं आते हैं।
आजकल आपको छुप - छुप कर देखने का
ज़ुनून चढ़ा है,
तभी तो आहिस्ता से तशरीफ़ लाते हैं।
आपके मिज़ाज में आजकल हम खुद को पाते हैं,
देख रहें हैं हम, हमारी तरह आप भी
कभी मुस्कान से तो कभी ग़म से भर जाते हैं।
और अंदाज़ अब हमारा पूरी तरह अपना लिया आपने,
पता नहीं क्यों? आप हमारे जैसा बन जाना चाहते हैं।
🌼 रीना कुमारी प्रजापत 🌼