राख़ ही तो था मैं और क्या था,
सिवाय इसके रसूख और क्या था
जिसने भी बात की अपनी की
सुनना ही तो था और क्या था
एक अक्स था उसकी आखों में
मैं ही तो था बस और क्या था
दुनिया से छिपा कर रखा था
आंसू ही तो था और क्या था
हवा में पानी में मिल गया हूँ
माटी ही तो था और क्या था