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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

गुज़रे कुछ इस तरह से वो

आज वो और हम किसी मोड़ पर टकरा गये
आज वो और हम किसी मोड़ पर टकरा गये....
उन्होंने नज़रें उठाई और फिर नज़रें झुकाई
देखकर हमे अनदेखा किया,
फिर गुज़रे कुछ इस तरह से वो हमारे सामने से
मानो पहचानते ही नहीं ।

बैठे थे वो महफ़िल में ठहाके लगा रहे थे
बैठे थे वो महफ़िल में ठहाके लगा रहे थे....
उस महफ़िल में शामिल हम भी थे ,
देख हमे गुज़रे कुछ इस तरह से वो हमारे सामने से मानो रिश्ते निभाना जानते ही नहीं।

आज वो और हम रूबरू थे
आज वो और हम रूबरू थे.....
जानते हुए भी उनके लिए अजनबी हम थे
लगता है नफ़रत है उन्हें हमसे,
पर महफ़िल में बरताव कुछ अलग भी रहा उनका
हमारे साथ।
गुज़रे कुछ इस तरह से वो हमारे सामने से
मानो नफ़रत करना जानते ही नहीं।

"रीना कुमारी प्रजापत"




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (2)

+

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

Bahut Bahut Sundar Prasang Mam.

Arpita pandey said

Bahut Sundar

रीना कुमारी प्रजापत replied

🙏🙏

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