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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

मैं प्रेम में पागल थी

मैं प्रेम में पागल थी…
हाँ, सच में पागल थी!
तू जहाँ, मैं वहाँ,
तेरी परछाईं तक संभालती थी।

तेरी हँसी मेरा सवेरा थी,
तेरी उदासी मेरी अँधेरी रात,
तेरे हर दर्द को सीने में रखा,
तेरे हर शब्द को पूजा दिन-रात।

तू चला, मैं दौड़ी,
तू रुका, मैं ठहरी,
तेरे होने में मैंने खुद को देखा,
पर मेरी परछाईं तक तुझसे अजनबी रही।

अपनी ख़ुशी को तेरे हवाले किया,
अपनी हँसी को तेरी झोली में डाला,
पर तेरा प्यार एक सौदा निकला,
मैंने सब कुछ दिया, पर कुछ भी न पाया।

मैं झुकी, मैं टूटी,
मैं खुद से ही रूठी,
तेरे प्यार में इतनी खो गई,
कि मैं मैं न रही, बस तुझमें ही छूटी।

और फिर एक दिन तूने कहा— “कौन?”
तो लगा जैसे रूह में भूकंप आया,
जिसे प्रेम समझकर पूजा मैंने,
वो बस एक सपना था, जो मुझसे बेगाना था।

अब मैं नहीं दौड़ती,
अब मैं नहीं झुकती,
अब प्रेम मेरे भीतर है,
अब मैं खुद से प्रेम करती।

तू अगर प्रेम था, तो मुझे समर्पण मिला,
पर मैंने प्रेम नहीं, खुद को दफ़न किया।
अब जान गई हूँ—
प्रेम में जलना नहीं,
प्रेम में खिलना सीखो,
स्वयं से भागना नहीं,
स्वयं को जीना सीखो!




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (2)

+

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

बहुत सुन्दरतम रचना आदरणीय सादर प्रणाम!!

Lekhram Yadav said

और हम कमेंट करते करते पागलपन हो रहे हैं, बहुत सुंदर रचना, सुप्रभात सहित सादर नमस्कार

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