सब बदलने में ,समय लग़ेगा।
ये दौर गुज़रने में, समय लग़ेगा ।।
ये जो सब उथल -पुथल है आस-पास।
ऐसे में मन को संभालने में समय लग़ेगा।।
ये अंधेरा ज़रूर ढलेगा !
इस मौत के कहर से तू ज़रूर बचेगा ।।
सारे दरवाज़े बंद हुए तो क्या हुआ ।
वो रोशनी का दरवाज़ा ज़रूर खुलेगा ।।
थोड़ा सब्र करो यारों हम सब फिर
हँसेंगे , जिएंगे ,खेलेंगे और मिलेंगे ।
बस , थोड़ा समय लग़ेगा ।।
----परोमा भट्टाचार्या