पोस्टकार्ड था अपना दिल पहले,
फिर धीरे से अन्तर्देशीय हुआ !!
दिल ये लिफाफा हुआ फिर कब,
कुछ पता नहीं ये चला यारो !!
लैंडलाइन का वो घंटों डायलिंग,
उसका भी इक जमाना था !!
फिर इश्क़ ये एसटीडी हुआ,
फिर इधर-उधर घूमी गलियाँ !!
तब जाके इश्क़ टू-जी हुआ,
फिर ये थ्री जी बनके धड़कने लगा !!
फोर जी के आते-आते,
वीडियो काल में इश्क होने लगा !!
नेट के कमजोर होते ही,
चेहरा थोड़ा कटने-फटने लगा !!
काफी देर तक ऐसा होने से,
कुछ डर सा इश्क़ में लगने लगा !!
अब फाइव जी का जमाना है,
दिल इन्सटा में ही लगाना है !!
अब अपना दिल ऑनलाइन है,
अब इश्क़ भी हाॅटलाइन है !!
अब दिल फ्लिपकार्ट पे अटका हुआ,
या अमेजाॅन का ही अब जमाना है !!
सात दिनों की फ्री ट्रायल,
फिर मनमर्जी लौटाना है !!
इश्क डाॅट काॅम के नगरी का,
अन्जामे गुलिस्तां क्या होगा ??
हर डाल पे डिजिटल चाहत के,
डिजिटल उल्लू लटके होंगे !!
वेदव्यास मिश्र की डिजिटल कलम से..
सर्वाधिकार अधीन है