ना कोई प्रश्न था… ना कोई उत्तर,
बस तेरा नाम था… और मैं था मुखर।
ख़्वाब में जी लिया… जो कह ना सके,
तू ही तू था वहाँ… और हम बस बहे।
छू लिया ख़्वाब ने… तो रंग बदल गए,
धूप भी भीग गई… घटा सी चल गए।
तेरी ही सांस में… बसी ये रौशनी,
हम कहीं खो गए… या तू ही मिल गए।
एक सदी से रुकी, वो हवा चल पड़ी,
तेरे होने की बात… जो कहीं पल पड़ी।
नीम अंधेरे में, इक रौशनी सी जगी,
तेरी तस्वीर ने जैसे दुनिया गढ़ी।
तेरा होना कभी… जैसे साया लगे,
हर तरफ तू ही तू… हर दिशा में जगे।
बिन कहे बात कर, बिन चले साथ चल,
हर नज़र, हर नज़र में तेरा नाम ढले।
एक नदी सी बही, मेरी रूह में तू,
बिन किनारे, बिन ध्वनि… फिर भी धड़कन में तू।
तेरी आहट नहीं… पर हर सांस में है,
जैसे मुझमें ही तू… और तू ही मैं है।
छू लिया ख़्वाब ने… तो रंग बदल गए,
धूप भी भीग गई… घटा सी चल गए।
तेरी ही सांस में… बसी ये रौशनी,
हम कहीं खो गए… या तू ही मिल गए।
- ललित दाधीच।।