आज मैंने हरी को देखा
धीरे से लंगड़ाते चले जा रहे थे वो
कुछ समझें उससे पहले
बहुत समझा गए वो…..
जब दौड़े उनके पीछे
टकराएं सूरदास से
सहमे से रह गएँ
ये क्या.. दर्शन कैसे पाएं
संसय में पाठ सीखा गएँ वो.....
प्रतीत हमेश ऐसा हुआ
जैसे करीब हरी को पाया
जब चरणों में पहुंचे
ये क्या.. मुँह हमसे फेर खड़े
सामर्थ्य कहाँ,? औकात बता गएँ वो
फिर हरिने क्यों ऐसे भाव दिएँ
मारे-मारे जगमें, निराधार बनाएँ
ऐसे अनेकों जिनको लाचार बनाएँ
आज तलक न समझें, उलझन दे गएँ वो....