उड़ रहा मन नींद में विभोर होने पर।
आँखें कैसी खुलें नही शोर होने पर।।
मेरी हालत जानने वाले खामोश रहे।
मर्ज इश्क का बढ़ गया दूर होने पर।।
तब से तन्हाई भाने लगी बंद कमरें में।
लिखने लगे खुद-ब-खुद चूर होने पर।।
खबर ले न ले आशिकी जाएगी नही।
रात भी बहलाती रहीं मजबूर होने पर।।
अरमान दिल के दिल मे रहे 'उपदेश'।
पूरे होने के आसार नही दूर होने पर।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद