मनुष्य का मन...
कौतूहल में कितना शान्त अशान्त रहता है।
एक द्वंद सा...
सदैव उसके जीवन में स्वतः चलता रहता है।
कितना सरल जीवन होता है,
जो प्रारम्भ में मनुष्य को मिलता है।
मनुष्य आदि से अ से ज्ञ तक पढता है,
इसी में उसका अतिरिक्त अनादि रचता है।
व्यक्ति स्वयं की त्रुटियों से,
जीवन को कितना कठिन बना देता है।
फिर...स्वयं के अतिरिक्त,
वह सभी पर दोष मढ़ता है।
सम्पूर्ण जीवन काल में...
मनुष्य चिंताओ की चिता में जलता है।
एक द्वंद सा...
सदैव उसके जीवन में स्वतः चलता रहता है।
हर पद ताल के जीवन में,
कर्तव्य कितने होते हैं।
सभी की आशाओं के अनुरूप,
मनुष्य जीवन कहाँ जीते हैं।
ना जानें भाग्य विधाता को, मन में
क्या थी सूझी।
जो उसने जीवन में,
विपत्तियों को देने की सोची।
स्वयं से विचार विमर्श करके,
मनुष्य खुद को समझा देता है।
और कुछ क्षण के लिए जीवन को,
समुद्र सा शान्त कर देता है।
सम्पूर्ण जीवन काल में...
मनुष्य चिंताओ के बवण्डर में रहता है।
एक द्वंद सा...
सदैव उसके जीवन में स्वतः चलता रहता है।
ताज मोहम्मद
लखनऊ

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




