दफ़्तर से घर आकर मैं छत पर लेटा लेकर खाट,
वर्षा रानी आ गयी लेकर अपनी ठाठ,
बूँद गिरी मेरे चेहरे पर मैं सोता हुआ जाग गया,
गद्दा और खाट लेकर मैं नीचे आँगन की तरफ भाग गया,
खाट बिछा दी मैंने छज्जे के नीचे,
रिमझिम-रिमझिम बरखा का ये सुहावना मौसम मुझे अपनी ओर खींचे,
ये भीगा-भीगा सावन मेरे तन को भिगो रहा था,
और मेरा मन कुछ पुरानी यादें संजो रहा था,
एक तरफ पुराने प्रेम की यादों ने मुझ को घेरा था,
दूजी तरफ चाय और पकोड़ों ने मेरा मन फेरा था,
फ़िर हमने अपना ध्यान एक तरफ लगाया,
यानी की चाय और पकोड़ों पर टिकाया,
लेटे-लेटे हमने अपनी श्रीमती को दी आवाज़,
जानु गर्मा-गर्म पकौड़े और चाय बना दो आज,
मगर हम ये भूल गए नये-नवेले दुल्हों को ही मिलते हैं ये ठाठ,
अपनी तो शादी को भी साल हो गए थे आठ,
अंदर से हमारी श्रीमती बड़े प्रेम से गुर्राई,
लेटे-लेटे फर्माइश करते तुमको शर्म नहीं आई,
तुम्हें क्या लगता हैं मैं तुम्हारी काम वाली बाई हूँ,
अजी नहीं तुम से शादी करके तुम्हारी पत्नी बन कर आई हूँ,
अगर इतना ही मन कर रहा है तो खुद आकर बनाओ,
अपने साथ मुझे और बच्चों को भी खिलाओ,
अब तुम्हारा कोई भी बहाना मैं चलने नहीं दूँगी,
पकोड़ों वाली बात अब मैं टलने नहीं दूँगी,
सामान जो भी खतम हैं बाज़ार से मैं ही ले आऊँगी,
मगर पकौड़े तो मैं आज तुमसे ही बनवाउँगी,
इसका परिणाम यह हुआ पकौड़े हमने ही बनाये,
गर्मा-गर्म, बीवी और बच्चों को खिलायें,
जब हमारा नंबर आया तो बरसात थम चुकी थी,
सूरज की तपन से धरती फ़िर से जल चुकी थी,
बरसात की एक-एक बूंद वास्प बन के उड़ चुकी थी,
गर्मा-गर्म पकौड़े हमने गर्मी में खाए,
आसमान की ओर देख मेरा दिल जलता जाए,
इससे अच्छा तो हम पुराने ख्यालों में खो जाते,
पुराने प्रेम का कुछ मिठा हिस्सा तो पाते,
हमारे लिए तो सावन भी गर्मी लाया है,
जिसने हमें गर्म पकोड़ा गर्मी में खिलाया हैं,
हमारी तरफ़ से यही राय हैं,
अगर चाहिए गर्म पकोड़ा और चाय हैं,
तो ऑनलाइन मंगवाएं बीवी के सामने फर्माइश ना जताए।
लेखक- रितेश गोयल 'बेसुध'