शीर्षक - एलोरा की गुफाओं का इतिहास और भारतीय अर्थव्यवस्था में इसका योगदान
लेखिका - रीना कुमारी प्रजापत
एलोरा की गुफाएं कहां है ? किस तरह इन्हें बनाया गया है ? इनका इतिहास क्या है ? इन पर किसका नियंत्रण रहा ? और भारतीय अर्थव्यवस्था में एलोरा की गुफाएं किस तरह अपना योगदान दे रही है ? इन सभी की जानकारी आज मैं आपको इस लेख के माध्यम से दूंगी।
एलोरा की गुफ़ाएं महाराष्ट्र प्रांत के औरंगाबाद जिले में एलोरा की पहाड़ी पर स्थित है। यह गुफाएं पहाड़ी काटकर जितनी सुंदरता से बनाई गई है उसका तो जवाब ही नहीं। जिस समय बस छैनी हथौड़े हुआ करते थे कोई मशीनें या और कोई अन्य तकनीक नहीं थी उस समय इन छोटे - छोटे औजारों से इतनी सुंदर गुफाएं बनाना और इतनी सुंदर आकृतियां देना एक बड़ी ही आश्चर्य की बात है।
ये गुफाएं बौद्ध धर्म, हिंदू धर्म और जैन धर्म से संबंधित हैं। तीनों धर्म की गुफाएं एक साथ एक जगह सहिष्णुता की भावना को दर्शाती है। एलोरा में सौ से भी ज़्यादा गुफाएं हैं लेकिन 34 गुफाएं ही सार्वजनिक रूप से पर्यटकों के लिए खुली हुई हैं। इन गुफाओं का निर्माण 7 वीं - 8 वीं शताब्दी में राष्ट्रकूट शासकों द्वारा करवाया गया था। यहां गुफा संख्या 1-12 कुल 12 बौद्ध गुफाएं, गुफा संख्या 13-29 कुल 17 हिंदू गुफाएं हैं और गुफा संख्या 30-34 कुल 5 जैन गुफाएं हैं।
बौद्ध गुफाओं में गुफा संख्या 10 सबसे सुंदर है जो कि "विश्वकर्मा गुहा मंदिर" है, यह चैत्य गुहा है। गुफा संख्या 11और 12 के लिए कहा जाता है कि यहां उस समय जो संत लोग हुआ करते थे वो निवास करते थे कह सकते हैं कि ये विहार गुफा होगी।
ऐसा कहा जाता है कि गुफा संख्या 5 में, यहां जो संत लोग रहा करते थे वो भोजन करते होंगे क्योंकि यहां टेबल की तरह पत्थर की लंबी-लंबी कतारें है जिनसे ऐसा लगता है कि दोनों तरफ ये लोग बैठते थे और बीच में इन पत्थर की कतारों पर भोजन की थाली वगेरह रखते होंगे।
हिंदू गुफाओं में गुफा संख्या 16 सबसे सुंदर है जो कि कैलाश मंदिर है यह मंदिर बड़ा प्रसिद्ध है, कैलाश मंदिर का निर्माण राष्ट्रकूट शासक कृष्ण प्रथम (756 - 793 ई.) ने करवाया था।
कैलाश मंदिर प्राचीन भारतीय वास्तु एवं तक्षण कला का सर्वोत्कृष्ट उदाहरण है। यह संपूर्ण मंदिर एक ही पाषाण को काटकर बनाया गया है जो कि काबिले तारीफ़ है।
एलोरा की गुफाओं में अन्य मंदिर रावण की खाब ( रावण की खाई) , देववाड़ा, दशावतार, लंबेश्वर, रामेश्वर, नीलकंठ आदि हैं "रावण की खाब" गुफा संख्या 14 है,
"दशावतार मंदिर" जो कि गुफा संख्या 15 है का निर्माण राष्ट्रकूट वंश के संस्थापक दन्तिदुर्ग ने 8 वीं शताब्दी में करवाया था, इसमें भगवान विष्णु के दस अवतारों की कथा मूर्तियां अंकित है। गुफा संख्या 21 जो कि "रामेश्वरम गुहा मंदिर" है गुहा शैली के मंदिर निर्माण के प्रारंभ का द्योतक है। इस गुहा मंदिर में भगवान शिव की लिंग के रूप में पूजा की जाती है। गुफा संख्या 28 एक चट्टान के नीचे हैं जिसके ऊपर से धारा प्रवाहित होती हैं इसे "सीता की नहानी" कहा जाता है।
गुफा संख्या 30-34 जैन गुफाएं हैं सभी जैन गुफाएं दिगंबर संप्रदाय से संबंधित हैं इन जैन गुफाओं का निर्माण 9 वीं शताब्दी में किया गया, इनमें से गुफा संख्या 32 तीन मंजिला है पहली मंज़िल पर महावीर स्वामी की चौमुख मूर्ति है और दुसरी मंजिल का नाम इंद्रसभा है यहां 23 वें जैन तीर्थंकर पार्श्वनाथ की समाधिस्थ प्रतिमा मिलती है।
1983 में एलोरा की गुफाओं को "यूनेस्को विश्व विरासत" सूची में शामिल किया गया।
औरंगाबाद पर समय - समय पर कई राजवंशों का अधिकार रहा है जिस समय जिस राजवंश का शासन हुआ उस समय एलोरा की गुफाएं भी उसके अधीन रही, कुछ ने इनका निर्माण करवाया, कुछ ने मरम्मत करवाई तो कुछ ने इन्हें मिटाने का प्रयास भी किया। एक समय इन गुफाओं पर होल्करोंं का नियंत्रण हो गया था यहां धार्मिक कार्य और प्रवेश के लिए शुल्क लिया जाने लगा, होल्करों के बाद ये हैदराबाद के निजाम के नियंत्रण में आ गई निजाम ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के मार्गदर्शन में गुफाओं की मरम्मत करवाई थी।
यह गुफाएं पर्यटकों के लिए पूरे साल खुली रहती हैं। एक बड़ी संख्या में यहां पर्यटक आते हैं जिनसे काफी आमदनी होती हैं। यहां घूमने आए पर्यटकों से शुल्क लिया जाता हैं, भारतीय पर्यटक से शुल्क 40 रूपये और विदेशी पर्यटक से 250 से अधिक का शुल्क लिया जाता है और अगर अंदर कैमरा ले जाना हो तो उसका 25 रूपये शुल्क अलग से देना होता है इस तरह से बड़ी अच्छी आमदनी होती है जो कि भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए बहुत सहयोगी है इस तरह से एलोरा की गुफाएं भारतीय अर्थव्यवस्था में अपना एक बड़ा योगदान दे रही हैं।