कहीं कोई ऐसा
क्यूंँ नहीं मिलता
जिस पर यक़ीं
किया जाए
काश कोई ऐसी
मानवता बूटी हो
जिससे मानव को
भर दिया जाए
जहांँ तक नज़र जाती है
वहांँ तक सिर्फ़
लोलुपता नज़र आती है
बचपन से हीं होती गर
परवरिश ऐसी की
स्वयं चेतना
जागृत हो कहती
दानवीर कर्ण का
अनुसरण किया जाए