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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

उम्र बह गई


उम्र बह गई चेहरा भी बदल गई
जातें जातें जख़्मो की निशानी दे गई
न वो रुकी, न हम रुके
न कोई वज़ह रह गई
थोड़े में कहाँ ज्यादा ले गई
करुणा की दुहाई दे गई
उम्र बह गई चेहरा भी बदल गई
जातें जातें जख़्मो की निशानी दे गई

कौन था वो, जो चुँगली कर गया
हम से हमारी हसरतें छीन गया
न नाम कहाँ, न काम किया
कितने सारे गुलशन उजाड़ गया
वो गुल न रहा, न खुश्बू रही
वीराना में फिर तश्वीर किसकी रह गई
उम्र बह गई चेहरा भी बदल गई
जातें जातें जख़्मो की निशानी दे गई

संसार में भयभीत क़ाफ़िला कई
जीवन गति में शामिल रिश्तें कई
कौन सा बंधन छूट है गया
कौन है.. कहाँ है..? जो रूठ गया
झूठ-मूठ नभे है वादे
जो हद से ज़्यादा हो थे गये
उम्र बह गई चेहरा भी बदल गई
जातें जातें जख़्मो की निशानी दे गई




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (5)

+

प्रभाकर said

सत्य वचन कहा आपने स्नेहाजी 👌उम्र बह गई चेहरा भी बदल गई, जातें जातें जख़्मो की निशानी दे गई👏Very Very Nice

स्नेह धारा replied

Thank you👏

रमेश चंद्र said

Bahut sahi kha aapne...umar ka badlav bahut hi darane bala hota ha.sb kuch badal jata ha. Bas rah jati ha kuch yaaden.

स्नेह धारा replied

Thanks

Vineet Garg said

यह जिंदगी है साहब जो उम्र के पड़ाव को पार करते हुए बीते जा रही है कभी हंसना है तो कभी रोना है बस हार नहीं माननी

स्नेह धारा replied

Thanks👏

Lekhram Yadav said

बहुत सुन्दर रचना पेश की आपने, आपको मेरा हार्दिक प्रणाम।

स्नेह धारा replied

आपको मेरा हार्दिक प्रणाम......Sir

डॉ कृतिका सिंह said

Bahut sundar prastuti 👌👌👏👏

स्नेह धारा replied

Thanks ma'am👏

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