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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra The Flower of WordThe novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayara By Reena Kumari Prajapat

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कविता की खुँटी

                    

ह्रदय - मस्तिष्क - प्रेम और मंथन - अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र'

प्रिये! तुम्हें देखकर जो लहर उठती है हृदय में,
वही लहर कहीं मस्तिष्क में तूफ़ान बन जाती है।
तुम्हारी मुस्कान में स्वर्गिक सुख का आभास होता है,
परंतु तुम्हारी चुप्पी में—
संसार भर की उलझनें सिमट आती हैं।

मैं नवीन प्रेम का वह पथिक हूँ,
जो तुम्हारी एक दृष्टि पर मोहित होता है,
और फिर उसी दृष्टि के भावों को
हज़ार बार तौलता भी है।

हृदय कहता है—
"यह तो वही है, जिसकी कल्पना बचपन से थी!"
मस्तिष्क टोकता है—
"सावधान! कहीं यह मोह मात्र न हो!"

प्रेम की यह वीणा जब झंकृत होती है,
तो भीतर कवि जाग उठता है,
किन्तु जब तुम उत्तर न दो,
तो तर्क का पुरोहित मुझे सताने लगता है।

कभी सोचता हूँ—
क्या तुम्हारे मन में भी वैसी ही तरंगे उठती होंगी?
क्या तुम्हारे नेत्रों में छुपा यह मौन,
मुझे समझने का प्रयास है या कोई संकेत?

मैं प्रतिदिन यह निर्णय करता हूँ—
कि आज नहीं सोचूँगा अधिक,
पर संध्या होते-होते
तुम्हारी यादें फिर मन का संतुलन बिगाड़ देती हैं।

हे प्रिये!
यदि यह प्रेम है, तो वह क्यों उलझाता है?
और यदि यह मोह है,
तो वह क्यों इतनी गहराई से भीतर उतरता है?

तुमसे मिलकर,
मैं स्वयं से एक नई पहचान माँगता हूँ।
तुम्हारी मुस्कान और मेरी असमंजसता के मध्य,
यह नवयुवक—
प्रेम की पहली परिभाषा गढ़ रहा है।

----अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र'


यह रचना, रचनाकार के
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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (8)

+

वन्दना सूद said

हे प्रिये!
यदि यह प्रेम है, तो वह क्यों उलझाता है?
और यदि यह मोह है,
तो वह क्यों इतनी गहराई से भीतर उतरता है?
👌👌👏👏🙌🏻🙌🏻शानदार लाजवाब रचना

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' replied

आपका बहुत आभार आदरणीय एवं सादर प्रणाम

मनोज कुमार सोनवानी "समदिल" said

हृदय सागर में मस्तिष्क की धूरी पर प्रेम के उतार चढ़ाव का खूबसूरत मंथन।इस मंथन से प्रेम की नयी परिभाषा निकालने की सुंदर धारणा। वाह, रचना में भरी मासूमियत लाजवाब है।👌👌🙏

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' replied

आपका बहुत आभार आदरणीय एवं सादर प्रणाम

मनोज कुमार सोनवानी "समदिल" said

अशोक जी, आजकल आदरणीय लेखराम यादव जी पटल से दूर हैं, कुछ खबर हो तो बताइए।

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' replied

आपका बहुत आभार आदरणीय एवं सादर प्रणाम
आदरणीय लेखराम यादव जी अपने पुलिस विभाग के प्रशिक्षार्थियों के लिए बदलते कानून के सम्बन्ध में पुस्तक लिखने में व्यस्त होने के कारन पटल पर नहीं आ पा रहे हैं, आशा है जैसे ही उनकी पुस्तक पूर्ण होगी वो जल्द हम सबके बीच में पहले की तरह अपनी हरफन मौला रचनाओं से पटल को प्रकाशित एवं रंगमय करेंगे

इक़बाल सिंह “राशा“ said

बहुत सुन्दर रचना
प्रेम क्यों उलझता है
मोह क्यों भितर उतरता है, लाजवाब सर

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' replied

आपका बहुत आभार आदरणीय एवं सादर प्रणाम

कमलकांत घिरी said

Waah sir ji ye to bilkul vastvik ahsas hai jo shayad har kisi ke jivan me ek na ek baar avshy ghatit hota hai💐 bahut hi sundar aur vastvik rachna hai sir ji 😍 aapko mera saadar pranaam 🙏

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' replied

आपका बहुत आभार आदरणीय एवं Kant Sir ji ko सादर प्रणाम

रीना कुमारी प्रजापत said

यह नवयुवक—
प्रेम की पहली परिभाषा गढ़ रहा है।
😀😀😀👏👏👏👏👏🙏🙏

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' replied

आपका बहुत आभार आदरणीय एवं सादर प्रणाम

शिल्पी चड्ढा said

बेहद ही ख़ूबसूरत रचना | शानदार |

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' replied

आपकी बेहतरीन समीक्षा के लिए बहुत बहुत आभार - आदरणीय को सादर प्रणाम

सुप्रिया साहू said

Bahut sunder rachna sir👌aapko sadar pranam 🙏🙏

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