इश्क परवान चढ़ते ही जान बन गए।
एहसास की नादानी से इंसान बन गए।।
हकीकत भूल बैठे साँस के आते जाते।
करीब से देख बैठे पहलवान बन गए।।
दिन महीना कैसे गुजरा पता न चला।
कब कैसे उसका अभिमान बन गए।।
तन्हाइयों के मारे मोहब्बत से हारे हम।
सारी कोशिशें उसकी जुबान बन गए।।
जिसकी कभी तलाश पूरी हुई 'उपदेश'।
नौकरी की वज़ह से मेहमान बन गए।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद