शब्दों का क्या, कब भरोसा तोड़ दें, बनते रिश्तों का अचानक रिश्ता छोड़ दे,
भरोसा गर जिंदा है वसूल का तेरे अंदर,
बिना दीवार के छत रखने का इरादा छोड़ दो,
शब्दों---
लोग हैरान है खुद के संसार से,
बातों ख़यालों के जंजाल से,खुली हवा में सांस लो,और खुद से नाता जोड़ लो,हमारी हर तमन्ना हर तरफ सजदे में रहती है,करो इतना करम खुद से अपनी आंखें खोल लो,
और तमाशा छोड़ दो,
कौन कहता तेरे दीपक में चिराग़ नही है,
अपने हम पर मिटने का इरादा छोड़ दो,
बहुतों ने जिंदगानी ख़ुद बिगाड़ी है,अपनी हाथों से खुद क़िस्मत बिगाड़ी है,इरादा रखना है अपने कदमों के निशान देखों,बढ़ो बुलंदी से और गैरों का रोना छोड़ो,
सर्वाधिकार अधीन है