इंसान अक्सर धोखा अपनों से ही खाता है
परायों से नहीं,
क्योंकि वो विश्वास भी अपनों पे ही करता है
परायों पे नहीं।
इंसान अक्सर दर्द भी अपनों से ही पाता है
परायों से नहीं,
क्योंकि वो ज़ुल्म अपनों के ही सहता है
परायों के नहीं।
इंसान बार - बार रुसवा भी अपनों से ही होता है
परायों से नहीं,
क्योंकि वो अपनों के किए अपमान को
मुस्कुराहट में खो देता है परायों के नहीं।
✍️ रीना कुमारी प्रजापत ✍️