बेइंतहा बोझ को उठाने की क्या जरूरत।
बेमौसम आँखें नम करने की क्या जरूरत।।
अँधेरे भी रास आजकल आ रहे होगे तुम्हें।
इस तरह की फितरत लाने की क्या जरूरत।।
रुख से नकाब उठाओ उजाला हो जाएगा।
विश्वास रहने दो अविश्वास की क्या जरूरत।।
आज को सँवारना सिखों कल की चिंता क्यों।
यों ही कल पर टालते रहने की क्या जरूरत।।
बार बार रूठ कर खुद को दुख देना छोड़ो।
जरा सी उम्र 'उपदेश' रोने की क्या जरूरत।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद