धूप सा तप रहा हमारा प्यार।
उड़ती बदलियाँ भाती अपार।।
आकाश में छितराई कुछ ऐसे।
चाह उनमें भी दिखी बेशुमार।।
क्या पता किस श्राप की मारी।
भटक रही जैसे व्याकुल भ्रमर।।
हो रहा तन प्रेम में निष्प्राण सा।
लौट आए उपेक्षित स्वर प्रखर।।
व्यक्त करके भाव शान्ति होगी।
किसी पर 'उपदेश' दिखे असर।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद