देखते देखते पश्चिमी शैली हमें खा गया,
कचीपूडी नृत्य वह छम-छम कहां गया।।१।।
किसी से भी काेई भी नहीं डर रहे,
औरत मर्द दाेनाें नंगा नाच कर रहे।।
अखबाराें के पहले पन्ने इनके तस्बीर छापते,
सुबह-सुबह हर लाेग यही चाव से देखते।।
भारत नाट्यम के बदले डिस्काे आगया ,
देखते-देखते पश्चिमी शैली हमें खा गया।।२।।
साडी और ब्लाउज में कितनी अच्छी लगती थी,
भारतीय वह नारी चांद जैसी दिखती थी।।
बदल गया उसका भी रुप और रंग,
तन पे वश्त्र पहन रही वह भी बडी तंग।।।
मर्द काे भी कुर्ता धाेंती के बदले टाई सूट भा गया,
देखते-देखते पश्चिमी शैली हमें खा गया।।३।।
कर के नकल दूसराें का गाैरवान हाे रहे,
अस्तित्व अपना हम अपने आप खाे रहे।।
जाने कहां क्याें किसके साथ घूल रहे,
भारत वासी हैं हम ये भी आज भूल रहे।।
हमारी संस्कृति सभ्यता शब्दाें में ही रह गया,
देखते-देखते पश्चिमी शैली हमें खा गया।।४।।
देखते-देखते पश्चिमी शैली हमें खा गया.......
----नेत्र प्रसाद गौतम