बरसों का नशा एक पल में उतार गया,
मेरा इश्क़ मेरी मजबूरियों से हार गया।
दरिया-ए-इश्क़ में उतर कर ही ये जाना,
जो इसमें डूब गया, वही उस पार गया।
कल माँ कह रही थी अपनी सहेली से,
अच्छे-खासे लड़के को इश्क़ मार गया।
सलीके से उजाड़ी उसने मेरी दुनिया,
पहले ऐतबार,इंतजार फिर प्यार गया।
आने में बहुत देर कर दी तुमने बसंत,
दरख़्त सारे सूख गए चला बहार गया।
🖊️सुभाष कुमार यादव