कविता : सिर्फ तुम मेरी....
तुम हो गई
हो जिसकी
तुम हो कर भी
नहीं उसकी
तुम्हें अपना मेरे
दिल ने कहा है
तुम्हें अपना मेरे
दिल ने चाह है
कौन से किताबों में
लिखा तुम मेरी नहीं हो
हे मेरी प्राण प्रिय
तुम जहां भी कहीं हो
चांदनी रात हो
या रात अंधेरी हो
और किसी की नहीं
सिर्फ तुम मेरी हो
और किसी की नहीं
सिर्फ तुम मेरी हो.......
netra prasad gautam