मेरे सामने से कौन गए, वो दस्त-ओ-गरेबाँ* करते हुए..
खुद परेशाँ होते हुए, औरों को भी परेशाँ करते हुए..।
आंधियों ने बिछाए होंगे, ये कांटे तो इन राहों में..
वरना बहारें तो गुजरी थीं, सफ़र आसाँ करते हुए..।
ज़माने ने एहसानों का भी, कुछ बदला न दिया..
बस यूं ही उम्र बीती, दुनिया का सामाँ करते हुए..।
वो हर रोज मेरे और, मुहब्बत के दरमियाँ आते हैं..
हम सर झुकाए बैठे हैं, रस्म-ए-इम्तिहां करते हुए..।
बाग़बां ने बहारों से मिन्नतें तो बहुत की इस दफ़ा..
मगर वो तो गुज़री बंज़र–ए–गुलिस्ताँ करते हुए..।
*दस्त ओ ग़रेबाँ –लड़ाई झगड़ा, हाथापाई
पवन कुमार "क्षितिज"

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




