तुम मुझको कल का भय देते ,
भविष्य की सोच जगाते हो l
मृत्यु की गोद से उठा हूँ मैं ,
और मुझे ही भय दिखलाते हो l
कल की बातें करते हो ,
कल से मुझे डराते हो l
पिछले कल की बातें है ,
वर्ष एक भी अभि गुजरा नहीं l
काल के मुख में जीवन था ,
फिर भी मैं तो डरा न था l
है धन्यवाद उन लम्हों का ,
माना भीषण् संताप मिला l
पर थोडी थोडी ही तो सही ,
अपनो को मैं पहचान लिया l
किस भय से मुझे डराओगे ,
मृत्यु खुद की थी मैंने देखी l
अब भला बताओ मुझको तुम ,
इससे वीभत्स्य क्या दिखलाओगे l
ना चिंता मुझको कल की अब ,
ना गुजरे वक्त तड़पाते है l
जीवन की सत्ता कितनी है ,
बस पिछले वर्ष था जान लिया l
ना डर मुझको तूफानो से ,
ना दावानल दहलाती है l
ना डर लगता अब मृत्यु से ,
ना कोई पीड़ा होती अब l
मैंने सब कुछ पहचान लिया ,
मृत्यु को भी जान लिया l
मृत्युंजय ने जीवन दान दिया ,
जगदम्बा ने वरदान दिया l
हसकर झेलु हर पीड़ा को l
समय ने वह चट्टान दिया l
----तेज प्रकाश पांडे
[इको क्लब अध्यक्ष]