दिमाग की टहल कदमी निकलेगी नही।
आज भी आँखो में सूरत जायेगी नही।।
वह नही तब इतने रंग बदलती दिन में।
शाम की सुरमयी आँखे दिखायेगी नही।।
अब खामोशी भी घायल कर रही मुझे।
छत पर 'उपदेश' आकर सतायेगी नही।।
रात को महसूस होता कभी कोई साया।
करीबी इतनी रही वो आजमायेगी नही।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद