ना जात ना धर्म के बंधन में बंधे हैं
जो भारत के कण कण में बसें हैं
जो पुरषोत्तम हैं सभी गुणों से परिपूर्ण हैं।
जो सुन्य से ब्रह्माण्ड तक जो अनंत हैं।
की जिसका अनुसरण मानव को महामानव
की जिसकी तर्पण सभी वियोगों को भूला दे।
जो अपनें रस में संपूर्ण श्रृष्टि को झूला दे।
जो है हिमालय से ऊंचा
जो सागर तक को नाथ कर सुखा दे।
जो अहंकार को मिट्टी में मिला दे।
जो है पुण्य का रक्षक।
जो तक्षक तक को हिला दे।
जो केवट सबरी सुग्रीव विभीषण को
अधिकार दिला दे।
जो फ़र्ज़ ईमान अनुशासन वचन पर जिंदगी
बीता दे।
जिसमे सम्पूर्ण भारत एक सोंच की तरह झलकता है।
जिसका दिल केवल आर्यावर्त के लिए धड़कता है।
जो सदा हीं शुद्ध और शांत है।
जो शुरू से महान है।
जो धर्म की स्थापना के लिए अधर्म को
मिटाता है।
जो सम्पूर्ण भारत वर्ष का राजा है।
की जिसके राज़ है चमकती दमकती है सभी प्रजा।
जो सर्वत्र विद्धमान है..
जो भक्ति भाव का प्रभाव है..
जो प्रेम रस का प्रवाह है..
वह राम है .....
वह राम है....