न गया मैं तीर्थों को, न पर्वत की ओर,
शिव पर विश्वास अटल, किया मन शिव की ओर ।
शिला पर, चारपाई पर, या जमीन के ठौर,
श्रद्धा से शिव जपु मैं, हर पल हर संजोर।
शिव शिव जप मग्न हुआ मन, रात दिन बिताया,
न कैलाश न अमरनाथ, पर विश्वास न टल पाया।
कण-कण में शिव बसे, हर दम गूँजत जाप,
श्रद्धा से छाप पड़ी, मन में दयालुता आप।
आँगन की मेड़ चढ़ा, तालु जीभ लगी,
अमृत झरा रस भरा, शिव कृपा अनघट भई।
खोजा मैंने क्या यह, इंटरनेट की खोज,
श्रद्धा से मिला वही, जो तीर्थों में न संजोज।
न नियमों से, न आसन से, न पर्वत की चढ़ाई,
न तीर्थों की राहों से, न घर-बार की कर जुदाई ।
श्रद्धा का अमृत झरे, मन में रहा शिव का जाप,
हर पल शिव नाम जपे, बन जाए जीवन आप।