आओ सुनाते है तुमको रामायण।
जाने क्यों कैसे हुई किस कारण।।
दशरथ नन्दन श्री राम को जाने।
शायद तब हमसब मोक्ष है पाये।।
अयोद्धया है श्री राम जन्मस्थली।
ये है राजा दशरथ की धर्मस्थली।।
आयोध्या में थे एक राजा दशरथ।
हर पल थे वह ईश्वर को सुमिरत।।
हर तरफ ही था यश दशरथ का।
हृदय था बिल्कुल दर्पण उनका।।
राजा दशरथ जो नंदन कह लाते।
धर्म कार्य वो अक्सर ही करवाते।।
प्रसन्न थी संपूर्ण अयोध्या नगरी।
अब आती महारानियों की बारी।।
धर्म पत्नियां हुई थी तीन उनके।
अतिशय प्रेम था सब का उनमें।।
नाम कैकयी, सुमित्रा, कौशल्या।
इनका दशरथ संग हुआ विवाह।।
सर्व प्रथम में थी कौशल्या पायी।
बादमें कैकेयी,सुमित्रा थी आयी।।
दशरथ को थी यह चितां आयी।
पुत्र की लालसा हृदय में जागी।।
मिलने आये वो गुरु वशिष्ठजी से।
कह दी लालसा ये मन की उनसे।।
मुनि वशिष्ठजी ने धर्मकांड कराये।
इसके ही ख़ातिर अग्निदेव पधारे।।
अग्निदेव जी हविष्यान्न को देकर।
चले थे दशरथ को वो समझाकर।।
आधा था कुल का कौशल्या को।
आधे में आधा मिला कैकेयी को।।
शेष बचा जो मिला सुमित्रा को।
यूं ही पायस बांटा था तीनों को।।
आये देखो मंगल बेला के क्षण।
होने वाला था श्री हरि आगमन।।
राम जी कौशल्याजी के कहलाये।
कैकेयी के हिस्से भरत जी आये।।
सुमित्राजी को दो पुत्र रत्न मिले।
लक्ष्मण,शत्रुघ्न जैसे पुष्प खिले।।
चैत्र माह का नौमी का दिन था ।
वह क्षण था यूँ शुक्ल पक्ष का।।
अंजलियाँ भर भर फूल बरसते।
देव,मुनि,साधु,संत सभी थे हर्षे।।
मधुर स्तुति हो रही थी वेदों की।
नभ में शोभा थी देवी देवों की।।
महिमा वर्णन में थे सभी विलीन।
नभ,थल,जल थे आनंद में लीन।।
क्षण है नाम करण संस्कार का।
भला हुआ है संपूर्ण संसार का।।
गुरु वशिष्ठ निमंत्रण पर है आए।
श्रीराम नाम का सुझाव है लाये।।
यूँ मिला था ज्येष्ठ पुत्र का नाम।
बने थे समुद्र सिंध फिर श्रीराम।।
बतलाता हूं बाकी पुत्रों के नाम।
ज्येष्ठ है जिनमें भगवान श्रीराम।।
संग चले है सदा ही लक्ष्मन भाई।
अब आती भ्राता भरत की बारी।।
अनुज हुए सबही मे शत्रुघ्न जी।
बोली भाषा थी उनकी वेदों सी।।
क्रमश...
ताज मोहम्मद
लखनऊ

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




