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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

रामायण भाग -1 -ताज मोहम्मद

आओ सुनाते है तुमको रामायण।
जाने क्यों कैसे हुई किस कारण।।

दशरथ नन्दन श्री राम को जाने।
शायद तब हमसब मोक्ष है पाये।।

अयोद्धया है श्री राम जन्मस्थली।
ये है राजा दशरथ की धर्मस्थली।।

आयोध्या में थे एक राजा दशरथ।
हर पल थे वह ईश्वर को सुमिरत।।

हर तरफ ही था यश दशरथ का।
हृदय था बिल्कुल दर्पण उनका।।

राजा दशरथ जो नंदन कह लाते।
धर्म कार्य वो अक्सर ही करवाते।।

प्रसन्न थी संपूर्ण अयोध्या नगरी।
अब आती महारानियों की बारी।।

धर्म पत्नियां हुई थी तीन उनके।
अतिशय प्रेम था सब का उनमें।।

नाम कैकयी, सुमित्रा, कौशल्या।
इनका दशरथ संग हुआ विवाह।।

सर्व प्रथम में थी कौशल्या पायी।
बादमें कैकेयी,सुमित्रा थी आयी।।

दशरथ को थी यह चितां आयी।
पुत्र की लालसा हृदय में जागी।।

मिलने आये वो गुरु वशिष्ठजी से।
कह दी लालसा ये मन की उनसे।।

मुनि वशिष्ठजी ने धर्मकांड कराये।
इसके ही ख़ातिर अग्निदेव पधारे।।

अग्निदेव जी हविष्यान्न को देकर।
चले थे दशरथ को वो समझाकर।।

आधा था कुल का कौशल्या को।
आधे में आधा मिला कैकेयी को।।

शेष बचा जो मिला सुमित्रा को।
यूं ही पायस बांटा था तीनों को।।

आये देखो मंगल बेला के क्षण।
होने वाला था श्री हरि आगमन।।

राम जी कौशल्याजी के कहलाये।
कैकेयी के हिस्से भरत जी आये।।

सुमित्राजी को दो पुत्र रत्न मिले।
लक्ष्मण,शत्रुघ्न जैसे पुष्प खिले।।

चैत्र माह का नौमी का दिन था ।
वह क्षण था यूँ शुक्ल पक्ष का।।

अंजलियाँ भर भर फूल बरसते।
देव,मुनि,साधु,संत सभी थे हर्षे।।

मधुर स्तुति हो रही थी वेदों की।
नभ में शोभा थी देवी देवों की।।

महिमा वर्णन में थे सभी विलीन।
नभ,थल,जल थे आनंद में लीन।।

क्षण है नाम करण संस्कार का।
भला हुआ है संपूर्ण संसार का।।

गुरु वशिष्ठ निमंत्रण पर है आए।
श्रीराम नाम का सुझाव है लाये।।

यूँ मिला था ज्येष्ठ पुत्र का नाम।
बने थे समुद्र सिंध फिर श्रीराम।।

बतलाता हूं बाकी पुत्रों के नाम।
ज्येष्ठ है जिनमें भगवान श्रीराम।।

संग चले है सदा ही लक्ष्मन भाई।
अब आती भ्राता भरत की बारी।।

अनुज हुए सबही मे शत्रुघ्न जी।
बोली भाषा थी उनकी वेदों सी।।

क्रमश...

ताज मोहम्मद
लखनऊ




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (3)

+

वेदव्यास मिश्र said

श्रेष्ठतम उच्चतम रचना !! कौन सोच सकता है कि अन्य धर्म के मानने वाले भी रामयाण के बारे में इतना सुन्दर और व्यापक स्तुतिगान लिख भी सकते हैं !! नमन आदाब भाई आपकी उच्चस्थ भावना को 💜💜

ताज मोहम्मद replied

आपकी ये प्रतिक्रिया मेरे लिए श्रेष्ठ पुरुस्कार है। मैंने इसका भाग 2 भी लिखा लेकिन लिखंतु के पटल पर नहीं डाला। भाग 1 में कोई भी समीक्षा नही प्राप्त हुई तो ह्रदय व्यथित हो गया। आज आपकी प्रतिक्रिया पाकर मैं स्वयं को बड़ा ही गर्ववंतित महसूस कर रहा हूं। आपने इस कृति पर अपनी महत्वपूर्ण समीक्षा दी उसके लिए आपको कोटि कोटि नमन और सादर आभार। कल मैं इसका भाग 2 पटल पर प्रकाशित करूंगा और आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा करूंगा। धन्यवाद।

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

Apne aap ko bahut abhaaga samjhta hu jo itni sundar stutigaan par nazar nahi gayi, pranaam salaam Taj Saahab aapki lekhni aur aapko, shayad rachnaon ke brrabhav m is par nazar nahi gayi aur itni sundar rachna se itne dino tak door raha,

ताज मोहम्मद replied

होता है भाई जी पर आपकी समीक्षा से ह्रदय प्रेम से भर गया। धन्यवाद।

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

Aapki rachna ka part2 padha tha bahut sundar lekin tab bhi man m vichar nahi aaya ki part2 h to part 1 bhi hoga kshama karein taaj saahab bahut hi sarahniya rachna. M ise bhi part2 ki tarah share karne ja Raha hu unhi tathakathit 4 logo ko

ताज मोहम्मद replied

हां मैं थोड़ा सा व्यथित हुआ था इसीलिए part 1 के कई दिनों बाद पार्ट 2 डाला था वो भी वेदव्यास मिश्र जी की प्रतिक्रिया के बाद मुझे लग रहा था शायद मुझसे कही कोई गलती हो गई क्या। पर आप लोगों का इतना प्रेम और स्नेह पाकर मैं अविभूत हो हो गया। धन्यवाद।

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